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Ravindra Bhartiya

Abstract Romance drama

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Ravindra Bhartiya

Abstract Romance drama

पतझड़ सा क्यों हुआ है

पतझड़ सा क्यों हुआ है

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बारिशों का मौसम, पतझड़ सा क्यों हुआ है

पानी आंखों का हर दिन बरसता है,

पर मेरा मन रेगिस्तान सा क्यों हुआ है।


बिजलियां कड़कती जा रही है,

आसमां शोरगुल हुआ जा रहा है

पर किसी रिश्ते का शोर

शांत सा क्यों हुआ है


बारिशों का मौसम,पतझड़ सा क्यों हुआ है

तिनका तिनका बिखरा है वो रिश्ता

जिसे बड़ी मेहनत से बनाया था।


वजूद क्या होगा अब मेरा,

यह कोई ना जानेकहने को सब साथ हैं...

पर वो साथ नहीं अब,

यह बात दिल ना मान

आज यह विचारो का ज्वार,

इतने उफान पे क्यों हुआ है

बारिशों का मौसम, पतझड़ सा क्यों हुआ है।


सवालों का कोई तूफान मेरे मन के तटों से

रोज टकराता रहता है,

कुछ यादों की धूल उड़ती है,

कुछ वादों की टहनियां टूटती है


उन पेड़ों से जिनको कभी मैंने

बेइंतेहा प्यार से सींचा था।

ठंडी लहरों से खुशनुमा यह मौसम,

आज राजस्थान की गरमी सा क्यों है

बारिशों का यह मौसम मेरे लिए

पतझड़ सा क्यों हुआ है।


बादलों ने जमकर बारिश की है चारों तरफ

गांव मेरा पानी से लबालब है,

पर मेरे दिल का मैदान इतना

सूखा सूखा सा क्यों हुआ है,

बारिशों का मौसम पतझड़ सा क्यों है......।


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