रशीद चाचा
रशीद चाचा
Tittle- रशीद चाचा
चहरे पर झुरियां,
आंखों में गहरा तजुर्बा है।
रशीद चाचा था उनका नाम,
गली के नुक्कड़ पर ही था उनका मकान,
उनका कोई अपना था,
ना ही कोई उनसे मिलने आता था।
चेहरे पर झुरियां,
आंखों में गहरा तजुर्बा है।
सब उनकी सोच को पुराना कहते है,
उनके ऊपर लोग अकसर ह़सा करते है,
उनके आंगन में गुलाब , चमेली और चम्पा थे,
वही बस उनके सबसे अच्छे दोस्त थे।
चेहरे पर झुरियां,
आंखों में गहरा तजुर्बा है।
सुना है मैने उनका भी परिवार था,
किसी हादसे में उनका सब कुछ बिखर गया था,
गर्मी की दोपहर में वो हम सबको आम देते थे,
हर किसी में को अपना पन ढूंढा करते थे।
चहरे पर झुरियां,
आंखों में गहरा तजुर्बा है।
काँपते होठों से वो सबको दुआ देते,
सूने घर में उम्मीद और यादों को वो संजोए रखते,
उन्हें तड़पते मैंने देखा था।
उनकी आंखों में रुके आसुओं को मैंने देखा था।
