सर्वत्र हो रहा घोटाला है
सर्वत्र हो रहा घोटाला है
यूँ आज के दौर में सर्वत्र हो रहा घोटाला है
झूठ छुप जाता है, ये सच तो बस निराला है !
अब तो सत्य एक चुपचाप खड़ा हो गया है
रिश्ता बस आज जैसे कागजी सा हो गया है !
निः स्वार्थ प्रेम की बात को ज़रा परे रखिए
सबके साथ सद्भावना का भाव ज़रूर रखिए !
लोगों से जितना मतलब हो उतना ही बोलिए
और काम निकल जाते ही खुद से दूर फेंकिए !
सबसे फरेबी मुस्कान के साथ बोली बोलिए
ईमानदारी की दुकान का ताला मत खोलिए !
जेब में नुकीला कोई एक खंजर ज़रूर रखिए
और जुबां से भरसक बेहद सबसे मीठा बोलिए !
वैसे हर रिश्ते की एक तयशुदा कीमत होती है
तो रिश्ते के बाजार में ढंग से मोलभाव कीजिए !
