पुनः एक बार आ जाओ बुद्ध..!
पुनः एक बार आ जाओ बुद्ध..!
मन आशांत क्या हुआ
घर छोड़ दिया
मृत्यु से भय लगने लगा
मृत्यु पर विजय पाने
जीवन अमृत्व को पाने
घर छोड़ दिया
मोह ने जकड़ लिया
अपनों ने पकड़ लिया
अज्ञानता के अंधकार में घिर गये
ज्ञान की पिपसा जागृत हुई अध्यात्म को जानना चाहा
बस घर छोड़ चल दिये
और...
घर क्या छोड़ा मोह टूटा
भ्रम टूटा/
अंधकार छटा तो रौशनी आई
और फिर वो गौतम थे बुद्ध हो गए
कभी सोचा क्या यशोधरा का क्या होगा
पुत्र राहुल कहाँ जायेगा
किसे तात बुलायेगा...?
बेशक तुम संसार के लिये बुद्ध हो गये
पर... जाकर देखना राज भवन के झरोखे से
आज भी यशोधरा राजपथ की ओर निहार रही होगी
वो नन्हा बालक बेशक बड़ा हुआ हो
पर वो शिशु आज भी पिता की प्रतिक्षा में बड़ा ना होने की जिद्द किये है
घर छोड़ने वाला हर पुरुष बुद्ध कहलाना चाहता है
पर... यदि स्त्री घर छोड़े तो नगर वधू
आम्रपाली क्यों बना दी जाती है..?
बोलो बुद्ध...!
क्या ऐसा ही ज्ञान मिला संसार को
स्त्री चरित्रहीन और पुरुष क्या...?
क्या ऐसे संसार की कल्पना थी तुम्हारे ज्ञान के ज्योतिपुंज में...?
सवाल बहुतेरे हैं बुद्ध
और... हम सवालों के गहरे खाई में
जवाब के इंतज़ार में औंधे मुँह पड़े हैं
मुझे भी राह दिखाओ
पुनः एकबार इस धरती पर आ जाओ...!
