पौरुष..!
पौरुष..!
बेशक...
तुम अर्जुन और भीम सा
पौरुष दिखाना
किन्तु...
किसी को जाने समझे बिना
उसके अस्तित्व /उसकी पहचान पर
उँगली मत उठाना..
क्योंकि...
अब कोई कर्ण किसी दुर्योधन के
मित्रता का मोहताज नहीं
कर्ण ने अब सीख लिया है
अपने अपमान का स्वयं इंतकाम लेना,
अब वो नहीं चुप हो जाता
सुत पुत्र या क्षुद्र कहे जाने पर
वो क्रोधित हुए बगैर ही
जवाब देता है
अपने पौरुष और अपने दम खम पर
नहीं आश्रित अब वो किसी राज घराने पर
या फिर
कालचक्र के घूमने का प्रतीक्षा नहीं करता वो
अब वो दुगुने साहस के साथ उतरता है मैदान में
विरोधियों को धूल चटाने..!!
