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Jyotshna Rani Sahoo

Drama Tragedy

4  

Jyotshna Rani Sahoo

Drama Tragedy

बेवा

बेवा

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कौन कुबूल करता है

बेरंग मुरझाई फूल को

भले ही गुच्छे में हो

भले ही पेड़ में हो


अपने भी कोशिश करते

उसका अलगाव का

और मुझसे तो

छीना गया है रंग

बेवा के नाम देकर।


मैं मुरझी नहीं थी

मुरझाया गया मुझे

जान बूझकर

मुझे मेरे खुशियों के

रोशनी से बांचित कर के

मैं अभी भी हूं उसी

आंगन के पेड़ में

उसी परिवार के गुच्छे में

पर अवांछित हो कर।


मैं अवांछित हूं पर निष्क्रिय नहीं

अभी भी दबी हूं कर्तव्य के

वजनदार बोझ के नीचे

पर मेरे कर्म सराहनीय नहीं है

मैं मौत को साथ लेकर 

विदा हुई थी उस मायके से

मेरे उनसे भी कोई नाता नहीं है।


एक आंगन की कली

दूजा आंगन की फूल बनी

पर महक नहीं पाई कहीं

मैं एक ऐसी दुर्भाग्य की प्यारी हूं

प्यार नहीं मिला ना मिलेगा

पर प्यार बांटना सिखाया जाता

मैं एक सहनशील नारी हूं।


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