उस मां पर क्या गुजरेगी
उस मां पर क्या गुजरेगी
कभी सोचे हो
उस मां के दिल पर क्या गुजरी होगी?
जब उसके दिल का टुकड़े को
उन दरिंदों ने बेरहमी से रौंदी होगी।
जिस लाडली के आंखों में
कभी आंसू ना देखी होगी
उसकी दर्द भरी चीखों की आहट
उसके कानों में गूंजी होगी।
जिसकी भूख मिटाने की कोशिश में
वो दिन रात एक करती होगी
कोई अपनी हवस का भूख मिटाएं
उसकी आत्मा को छलनी कर दे
ऐसे कभी क्या वो मां सोची होगी?
जिसकी एक खरोच पर घर सर पे उठा लेती
उसका कुचला हुआ बदन देखकर
उस मां पे क्या गुजरी होगी?
जिसे फूल सी रखी थी वो
जो उसकी घर आंगन महकाती थी
अभी दुनिया को कांटों सी चुभेगी
अपनी वो मासूम कली
जब खुद की अस्तित्व के लिए लड़ेगी
उस मां पे क्या गुजरेगी?