जज़्बात सबका
जज़्बात सबका
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क्या होता है दर्द मैं किसको बताऊँ
सहते तो सब मैं क्या ज्यादा दिखाऊँ ।
कोई निगल देते थूक की तरह अनकही बात
मैं बयां कर दास्तां किसके ऊपर सितम ढाऊँ ।
जब बहते हैं हवा उसके साथ बहते जज़्बात
मैं ठहरे हुए तपते आंसू को कैसे बहाऊँ ।
जल रहे है सब पहले से अपने अपने गम से
मैं भला और ज्यादा किसको जलाऊँ ।
कण कण में गूंज रहे है दगाबाजी धोखाधड़ी
क्या नया और नायाब चीज है जो ढिंढोरा बजाऊँ ।