भूख
भूख
चारों तरफ़ वीरान है
खाली पन जिंदगी में
दुनिया की भीड़ में
पीछा करता अकेलापन है
वो कमज़ोर तो नहीं
हौसला भी उछलता है
उमंग भी चीखता चिल्लाता है
पर ज़रूरत हल्ला बोल करता है
अफजाई होता है गरीबी का
दुःख की ताज पहनते गरीब
पेट में क्यूं भूख तमाशा करता है?
कोई बोलता यह एक आदत
कोई बोला बनावट
कोई बोला आहा रे फूटी किस्मत
नियति को मंजूर कुछ और होता है
खुशियां मजबूरी में मजदूर बनते हैं।
हाय रे ये भूख
हर बनावट को मंजूरी देती
उसके लिए रास्ता कुछ नहीं
बस एक ही
मुंह से लेकर पेट तक
लेश मात्र रह जाता एक राह
मुहाजिर बन जाते गुनाह के
गुनहगार बनते ईमानदार
ईमानदारी से करते गुनाह।
कोई इज्जत ढकने के लिए
दो हाथ की कपड़ा ढूंढते
कोई बचने के लिए ठंड से
जब पर फैलाएं कम पड़े चादर
लपेट में लेते गुनाह के कम्बल
दो गज़ की जमीन ना मिले
सच्चाई के मुहाजिरों को
बाद में गुनाह के सहर मिलते।