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Nilofar Farooqui Tauseef

Tragedy

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Nilofar Farooqui Tauseef

Tragedy

हाँ ! हिंदी हूँ मैं

हाँ ! हिंदी हूँ मैं

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गुड मॉर्निंग कहकर,

शरूआत करते हैं।

कुछ इस तरह, हिंदी दिवस

की बात करते हैं।

हाँ ! हिंदी हूँ मैं


शब्दों को माला में पिरोकर

एक - एक मोती का बखान करते हैं।

खुद को बताते है, पहरेदार

इस तरह निगेहबान करते हैं।


भाषण के समापन पे ही,

थैंक्यू बोलते हैं।

फिर सॉरी कहकर,

सभी को तोलते हैं।

हाँ ! हिंदीहूँ मैं


बच्चे जो हमारे,

भविष्य कहलाते हैं।

उन्हें भी कहाँ ?

घर पर हिंदी सिखाते हैं।


मायूस हूँ परेशान हूँ मैं।

क्या सिर्फ हिंदी दिवस

मनाने तक सम्मान हूँ मैं।

समय मिले तो इन बातों पे सोचना

खुद में खोकर, मुझको टटोलना।

हाँ ! हिंदी हूँ मैं।


मुझे मेरा सम्मान चाहिए

वो सम्मान, वो अभिमान चाहिए।

हाँ ! हिंदी हूँ मैं...।


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