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अनामिका वैश्य आईना

Tragedy

4  

अनामिका वैश्य आईना

Tragedy

चेहरों के जंगल

चेहरों के जंगल

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चेहरों के जंगल में खोये हुए हैं सब 

हृदय को तम में डुबोये हुए हैं सब.. 


ठीक है कह रति ख़ुद को समझाते 

आँखे कह देती हैं रोये हुए हैं सब..


प्रेम पुष्प बाग में खिले कहो कैसे

नफ़रतों के बीज बोये हुए हैं सब.. 


गंगा-जल भी बेअसर है आग पे 

ईर्ष्या से मन जलाये हुए हैं सब.. 


रह-रह कर खिसक रहें है देखिए 

रेत के महल सजाये हुए हैं सब.. 


इशारों पे नाचें कठपुतली की तरह 

बने नहीं स्वयं बनाये हुए हैं सब..


बच न पाएगा कोई किसी से भी

तीक्ष्ण निगाहें जमाये हुए हैं सब..


अपना जानकर जिसे थे पूजते 

असमय वे ही पराये हुए हैं सब.. 


बैर दिल में रख सोचें-करें बुरा 

नाम के रब्त निभाये हुए हैं सब..


किसी का कितना भी करो भला

भलाई सारी भुलाये हुए हैं सब..


परवाह छोड़कर स्वकर्म ही करें

द्वेषवश मुँह फुलाये हुए हैं सब..


छीनें स्वरुप मन के 'आईना' ने

अदृश्य हैं जो दिखाये हुए हैं सब..


दोहरी नीतियों की चाले तेज़ हैं 

दिखाते हैं जैसे सताये हुए हैं सब.।



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