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Phool Singh

Tragedy

4  

Phool Singh

Tragedy

प्रवासी

प्रवासी

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प्रवासी सा हो गया सबका जीवन, किसी को अपनेपन का अहसास नहीं

साथ में रहते सभी यहाँ पर, क्यूँ रहता खालीपन हर कहीं।।


घड़ी भर सब हँसते मिलते, अछूत से होते पल में सभी

आर्थिक हालत बिगड़ चुके, अन्न को मोहताज है कितने कहीं।।


जान के लाले पड़ गए हर ओर, बेगाने हो रहे अपने भी

जाने कितने चले गए, कितने खड़े तैयार कहीं।।


छोड़ चुके थे जिस मिट्टी को सब, याद आ रही है आज वही

किसी सूरत में मिल जाये हमको, हर जन की है इच्छा यहीं।।


कस्बा-शहर हर रोज भटकते, रोज-रोटी संग सपने भी

न सोचा सब छूट जाएगा, कष्ट आएगा इतना कभी।।


पता पूछती मंजिल भी अब, इच्छा, अभिलाषा क्या है अभी

आज ही अपनी जिंदगी जी ले, कल का पता न हो भी कभी।।


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