आखिर हाय वो शख्स ही छूट गया!!
आखिर हाय वो शख्स ही छूट गया!!
एक शख्स मिला मुझको
जो किस्से लिखता था !!
वो अपनों सा हँसता था
वो गैरों सा, बचता था
फिर दोस्त कहा खुद को
एक शख्स मिला मुझको
जो किस्से लिखता था !!
लट उलझी माथे पर
वो सुलझ ना पायी थी
उस सोच –बोल के बीच
चुप्पी सी छाई थी
उन सूनी आँखों में
जंगल सा दिखता था !
एक शख्स मिला मुझको
जो किस्से लिखता था !!
एक सोच अधूरी सी
कोई राज भी गहरा था
वो होंठ खुले तो भी
चीखों का पहरा था
अपने में डूबा सा
नज़रें भी चुराता था !
एक शख्स मिला मुझको
जो किस्से लिखता था !!
वो बारिशों में उतरा
दरिया में नहाया था
पर इतना सूख गया
वो भीग नहीं पाया
न अपना न पराया हूँ
खुद से वो कहता था !
एक शख्स मिला मुझको
जो किस्से लिखता था !!
जो बातों में हरपल मुझे
अपना कहता था
वो अपनों सा हँसता था
वो गैरों सा, बचता था
फिर दोस्त कहा खुद को
एक शख्स मिला मुझको
जो किस्से लिखता था !!
कुमार भी उस पर दिलों
जान से मरता था
हरपल हरदम उसपर
कविताएं लिखता था
एक दिन कविता लिखना छूट गया
और वो शख्स ही मुझसे रूठ गया
रूठों को मना ना पाया कुमार
और आखिर हाय वो शख्स ही छूट गया.