वृद्धाश्रम की दीवारें
वृद्धाश्रम की दीवारें
छोड़ गए तुम लाल मेरे
कैसे तुम बिन रह पायेंगें?
वृद्धाश्रम की दीवारों में
घुटकर हम मर जायेंगें.
तुमको कितने लाड़-प्यार से
कष्टों में भी पाला है,
पर तेरे घर के भीतर
मेरे नाम का न एक निवाला है.
कितनी रातें जाग-जागकर
तुमको लोरी सुनाई है,
पर बूढ़े माँ-बाप पर तुमको
जरा दया न आई है.
हम छुप रहते सेवक बनकर
घर में कोना दे देते....
कम-से-कम बच्चों के घर में
आखिरी साँसें तो लेते .
मेरे दूध का लाल मेरे
ये क्या क़र्ज़ चुकाया है?
इन बूढी हड्डियों को तुमने
वृद्धाश्रम पहुँचाया है.
अब तरसेंगे साबुन,तेल को
आँखें राह तेरी देखेंगी,
तेरे पिता की बूढी आँखें
अपनी लाठी ढूंढेंगी .
जीते जी ही मार दिया है
लाल मेरे हम दोनों को,
कैसे ये आघात सहेंगे
इस आयु में हम दोनों.
नहीं मांगी कभी साड़ी,बिंदिया
ना ही दवाई और चश्मा,
बहू-पोते को तंग न किया कभी
दे गए फिर भी तुम चकमा .
पथराई-सी आँखे हमारी
तुम पत्थर को ढूंढ रही,
छोड़ गये जब से यहाँ हमको
फिर आकर कभी सुध न ली.
मत चुनवाओ हमको बच्चों
वृद्धाश्रम की दीवारों में ,
रहने दो तुम अपने घर में
पड़े रहेंगे किनारों में .
छोड़ गए तुम लाल मेरे
कैसे तुम बिन रह पाएंगे।