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Dheeraj Srivastava

Romance Tragedy

5.0  

Dheeraj Srivastava

Romance Tragedy

बदल गया है गाँव प्रिये

बदल गया है गाँव प्रिये

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बदल गये हैं मंजर सारे

बदल गया है गाँव प्रिये।


मोहक ऋतुएँ नहीं रही अब

साथ तुम्हारे चली गईं।

आशाएँ भी टूट गईं जब

हाथ तुम्हारे छली गईं।

बूढ़ा पीपल वहीं खड़ा पर

नहीं रही वह छाँव प्रिये।


पोर-पोर अंतस का दुखता

दम घुटता पुरवाई में।

रो लेता हूँ खुद से मिलकर

सोच तुम्हें तन्हाई में।

मीठी बोली भी लगती है

कौए की अब काँव प्रिये।


चिट्ठी लाता ले जाता जो

नहीं रहा वह बनवारी।

धीरे-धीरे उजड़ गये सब

बाग-बगीचे फुलवारी।

बैठूँ जाकर पल दो पल मैं

नहीं रही वह ठाँव प्रिये।


पथरीली राहों की ठोकर

जाने कितने झेल लिए।

सारे खेल हृदय से अपने

बारी-बारी खेल लिए।

कदम-कदम पर जग जीता, हम

हार गये हर दाँव प्रिये।


पीड़ा आज चरम पर पहुँची

नदी आँख की भर आई।

दूर तलक है गहन अँधेरा

और जमाना हरजाई।

फिर भी चलता जाता हूँ मैं

भले थके हैं पाँव प्रिये।


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