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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Tragedy

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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Tragedy

बस्ती ये जला दी किसने

बस्ती ये जला दी किसने

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जिस्म से रूह को जाने की दुआ दी किसने ।

मेरी हर आरज़ू मिट्टी में मिला दी किसने ।।


वक़्त की चोट, ज़माने के सितम को सहकर,

मैंने इक हद जो बनाई थी मिटा दी किसने ।


मैंने जी भर के अभी चाँद नहीं देखा था,

मेरे अहसास की बस्ती ये जला दी किसने ।


इश्क के साये से बचकर जो निकलना चाहा ;

मेरे पीछे से मुझे फिर से सदा दी किसने ।


रूह को छू के तेरी याद दिला जाती हैं ;

इन हवाओं को क़यामत की अदा दी किसने ।


मेरी बर्बादी पे यूँ जश्न मनाने वालों,

मेरे ज़ख़्मों को अचानक ये हवा दी किसने ।



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