आदमी की फितरत
आदमी की फितरत
प्रभुजी आप हृदय बैठे,
सही राह दिखलाते हैं।
हृदय की कोई माने ना,
मन की डफली बजाते हैं।।
मन-मन की सारे जन करते,
और मन का राग अलाते हैं।
संगीत ह्रदय का सुना नहीं,
फिर सिर धुन-धुन पछताते हैं।।
माया का वो पर्दा डाले,
दरश ना तुम्हरा पाते हैं।
सावन अंधे को हरा सूझे,
और हरा समझ के खाते हैं।।
बुद्धि ज्ञान को दफन किए,
वो अपने गाल बजाते हैं।
पता नहीं खुद राह उन्हें,
दूसरी राह दिखाते हैं।।
क ख ग को समझे ना,
अपना न्याय सुनाते हैं।
दुनिया पटी पड़ी इनसे,
मेंढक ज्यौं टर्राते हैं।।