Revolutionize India's governance. Click now to secure 'Factory Resets of Governance Rules'—A business plan for a healthy and robust democracy, with a potential to reduce taxes.
Revolutionize India's governance. Click now to secure 'Factory Resets of Governance Rules'—A business plan for a healthy and robust democracy, with a potential to reduce taxes.

PRATTUSHA SINGH

Tragedy

4  

PRATTUSHA SINGH

Tragedy

स्त्री

स्त्री

1 min
199


वेदना सी बेधती चली गई 

मेरे अन्तर्मन को वो चीख

हिल - सा गया जहांन सारा

जीत गया कुकर्मी - नीच

वो चीखती - चिल्लाती किस से

कान सबने हैं बंद किए


वो आपबीती बताती किस से

समाज ने तो बस निर्णय दिए

सजा भी उसे ही मिली

और दुत्कार की पात्र भी वही

वो लाज में सिमटी सी रहती


पर जग-हसाई भी उसी की हुई

लोगों ने संज्ञाएं तो दी उसे

पर वो नहीं ......

जो हिस्सा थीं उसके वजूद का

उसे कुलटा से लेकर

चरित्रहीन तक कहा

लेकिन उसे कुछ ना कहा .....


जिसकी वजह से ये सब हुआ

कुसूरवार कोई और था

सजा मिलती रही किसी और को

आज भी अन्तर्द्वन्द मन में

पूछता ये सवाल है


क्या समय की अंतिम स्वास तक

नारी ही परीक्षा और त्याग है

क्यों उस पर कोई सवाल नही उठता

क्यों उसको शर्मिंदगी भरी

संज्ञायों से नहीं नवाजा जाता


जिसने लूट कर तार-तार कर दिया

उस अस्मिता को

जिसे बचाने का संकल्प लेकर

आगे बढ़ती है हर स्त्री।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy