माँ ...
माँ ...


झुकी कमर कभी घर ना बुहारे,
हो ना जायें माँ बाप कभी बेसहारे।
इसलिये हार गयी अपना सबकुछ,
कि उसका लाल कभी कुछ न हारे।
माँगती है हर रोज दुआ प्रार्थना में,
जिन्दगी में तकदीर ठोकर न मारे।
ऐसे चाक पर बनाया किरदार को,
हर कोई उसपर अपना जीवन वारे।
प्यार से देखती है सुन्दर मुखड़े को,
जैसे कोई नज़र न किसी को निहारे।
मिले हर माँ को जग में उसका रुतबा,
कोई माँ कभी न वृद्धाश्रम पधारे।