इत्तफाक़...
इत्तफाक़...
रुक भी जाओ, रात होने को है,
एक अरसे बाद बात होने को है।
मत काटो शजर तरक्कियों को,
मेरा शहर अब बर्बाद होने को है।
रखो ज़रा थोड़ा और हौसला,
खुशियों की शुरुआत होने को है।
पक्षी फड़फड़ाने लगें हैं पर अपने,
लगता है अब बरसात होने को है।
चाहने लगे हैं मुझे मेरे दुश्मन भी,
लगता है ज़िंदगी आबाद होने को है।
सालों बाद आया है महबूब का खत,
लगता है आज मुलाकात होने को है।