बदलते मिजाज़
बदलते मिजाज़
जाने कहां गुजार कर रात आरहे हो।
जश्न मना कर खाली हाथ आरहे हो।
गए तो थे बोलकर अकेले बाजार करने,
डालके आशिक़ के गले में हाथ आरहे हो।
आज रुख पर गजब ही नूर है आपके,
अदाइगी से संभालकर बाल आरहे हो।
पता नहीं कौन सा सच छुपाने को हो,
उल्टा मुझसे ही पूछते सवाल आरहे हो।
कहकर गए थे कल आओगे मिलने,
ये क्या, अब तुम अगले साल आरहे हो।