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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

किसानों की दुर्दशा

किसानों की दुर्दशा

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धरती प्यासी,अम्बर प्यासा प्यासा देश का हर किसान

फिर भी वो खुश रहता है,लबों पे रहती सदा मुस्कान

कर्ज तले बुरी तरह फंसा है,सूद के सर्प ने हरपल डसा है

साहूकार दुष्ट रोज लेता जानएक के दस कर काटता कान

पीढ़ी दर पीढ़ी चलाता रहता,उस पे तीक्ष्ण शूल का बाण

साहूकारों से रहता वो परेशानकब बदलेगा ये देश का विधान

धरती प्यासी,अम्बर प्यासा ,प्यासा देश का हर किसान

कब तक भूखा,प्यासा रहेगा,ये देश का अन्नदाता महान

ज़्यादा उपज,भाव कम कम उपज,आंखे नम

कौन देगा परोपकारी को खुशहाली का वरदान

उसके अपने शत्रु बन बैठे हैं जख्म पे नमक छिड़क बैठे हैं

वो ही उसे मजबूर कर रहे है,तू कर हररोज बस विषपान

धरती प्यासी,अम्बर प्यासाप्यासा देश का हर किसान

हम चाहे कितनी फैशन में रहेहर शख्स के पूर्वज किसान रहे

इन्हें बचा लो,खुद को बचा लोकहीं ऐसा न हो जाये साखी

हम गोली लेकर ही जिंदा रहे,आजकल के आधुनिक इंसान!



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