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Arshneet Kaur

Drama

4.9  

Arshneet Kaur

Drama

वो दिन पुराने हो गए

वो दिन पुराने हो गए

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वो दिन पुराने हो गए,

अब कहाँ कोई राधा किसी के प्यार में,

अपनी जुल्फें संवारेगी, किसी के इंतजार में।

अब कहाँ कोई मीरा ढेरों सुख पाकर,

पूजेगी किसी कृष्ण को, भजन गीत गाकर।

अब तो ना कोई राम है ना कोई लक्ष्मण,

ना साहिबज़ादों का शोर, ना गंगा का पवित्र संगम।


अब कहाँ कोई रावण खूब अहंकार में,

उठा ले जाएगा सीता को,

किसी बाँध के टूटने के इंतजार में।

अब कहाँ कोई वजीर सिंहासन पर बैठकर,

मौत का आदेश देगा, अपनी ताकत पर ऐंठकर।

अब तो ना कोई इंद्र है ना कोई नारायण,

ना वायु का खौफ है, ना हिडिम्बा सी डायन।


पर अब भी वही दुर्योधन है, अब भी वही अर्जुन।

वही अंधविश्वास की लडाई, वही एक रुपये का शगुन।

कुरुक्षेत्र का मैदान नहीं है, जंग का मैदान जीवन है।

इंसानों से नफरत जुड़ी है, ये अजीब सी सीवन है।

द्रौपदी जैसी देवियों को बचाने, अब कोई कृष्ण नहीं आते।

दुनिया को गलत ठहराते लोग, सब भूलते चले जाते।


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