तेरी गली से रुखसत होकर मैं चली
तेरी गली से रुखसत होकर मैं चली
कुछ ख्वाहींशों को ओढ़ कर कफन में मैं चली
हाँ तेरी गली से रूकसत होकर मैं चली
मैं कोई वजूद थीया कोई दास्तान,
जो एक दर से ठुकराने परदुसरे सफर को चली
वो तेरा मुझे अपनाने से ठुकराने तक का फासला
तेरी रूसवाइयों से तय कर के मैं चली
कुछ ख्वाहींशों को ओढ़ कर कफन में मैं चली
हाँ तेरी गली से रूकसत होकर मैं चली
मेरी मुहब्बत बस तुम थे,समझाते-समझाते मैं हार गयी
किसी और की बाहों ने जो दी तुझे पनाह,
मैं भी मौत की बाहों में खूदको समेट के चली
मेरी दागदार किस्मत को कहीं दूर
तेरे साये से लेकर दूर चली
कुछ ख्वाहिशों को ओढ़ कर कफन में मैं चली
हाँ तेरी गली से रुखसत होकर मैं चली।