किस्मत का तारा
किस्मत का तारा
आज जीत लिया है
मैंने भी
जहाँ सारा,
बन्द मुठ्ठी में है
किस्मत का तारा।
टूटा था अभी
बेजान होकर
धरा पर बेजा ही
शोर था।
कह रही थी माँ
जो माँगना है माँग ले,
सपनों के उस गुलिस्तां से
एक फूल तो तोड़ ले।
तमन्ना तेरी आज
ये पूरी कर देगा,
खाली पन्नों में भी
रंग भर देगा।
माँगा था जो मैंने
वही मिल गया,
जिंदगी का जीता हुआ
सपना मिल गया।
फिर यह सिलसिला-सा
बनकर चलता रहा,
हर रात किस्मत का तारा
आंखों में चमकता रहा।
अभिमान-सा बनकर
यह हर कदम चलता रहा,
पर उम्र के उस मोड़ पर
टूट कर हर बार अधूरा-सा रहा।
किस्मत के भरोसे
जो जिंदगी को छोड़ा,
अंतिम सफर में
वह किस्मत का तारा
कभी न टूटा।