गजल
गजल
जागती आंखों में कुछ सपने यूं ही पलते रहे
वो रास्ता तुमने दिखाया और हम चलते रहे।
राह में खतरे बड़े थे और फिसलन भी बहुत।
हम गिरे, गिर कर उठे फिर भी हम चलते रहे।
मोतियों की चाह है तो गहराइयों से क्यों डरें
साध सांसें लगा गोते ,हम सीपियां चुनते रहे।
जंगलों में ही मिलेंगी जड़ी बूटियां घर पर नहीं।
ओर खतरे भरें जंगलों में अंधे सफर करते रहे।
जीत हो या हार हो हम ये खेल खेलेंगे जरूर।
इस लिए शतरंज की हर चाल हम चलते रहे।।