यादों का भँवर
यादों का भँवर
ख्वाबों ख्यालों के अनदेखे भंवर में
ज़िंदगी की तलाश में अजनबी इस शहर में
मुकम्मल मिलन की आस लिए
भटका मैं यूँ इस अनजाने से सफर में ।
गलतफहमी में था ,
कि वो रहबर मेरा, मेरा हाथ थाम लेगा
बिन बताए ही वो ...मुझे ढूंढ लेगा
इसी आस में चलता रहा बेफिक्र मैं
बिछुड़ गया मैं इस अनदेखी डगर में
सोचा कि आँखों से बहते हुए अश्क
देख हाल वो मेरा इस कदर पूछ लेगा
जितना दर्द में रोई हैं आँखें ये मेरी
मुस्कान वो उतनी वो इनमें भर देगा
प्यार की बारिशें यूँ वो उड़ेल देगा
मेरे दिल के इस सूखे हुए समंदर में
बीती ज़िंदगानी पर वो ना आया
हुआ लापता मैं इस कातिलों के शहर में
हसरतें दिल की दिल में दबाकर
अब जीए जा रहा हूँ बस इसी ही फ़िकर में
आएगा वो इक दिन ,कभी तो कयामत होगी
बैठा हूँ मैं बस , अब इसी ही सबर में ।
देखना कितनी ताक़त है मुहब्बत के असर में
मिलें ठोकरें चाहे बीते ज़िंदगानी कुफ्र में
तब तलक ना मुझको उसका दीदार होगा
तब तलक ना रूह को मेरी सुकून होगा
हर पल मुझको बस तेरा इंतज़ार होगा
चाहे बीत जाएं ना सदियां यूँ लेटे क़बर में ।।
