बार्टर सिस्टम वाला प्रेम
बार्टर सिस्टम वाला प्रेम
मैं संसार की सारी औरतों से एक सवाल करना चाहता हूँ......
तुम सब औरतें मन से मन वाला प्रेम क्यों करती हो?
वही पूर्ण समर्पण वाला प्रेम....
वही शाश्वत प्रेम......
सिर्फ़ मन में मन का प्रेम....
जिसमे न कोई माँग होती है और ना कोई दम्भ भी....
एक संपूर्णता का एहसास.....
जिसमे न भाषा की ज़रूरत होती है और न संवाद की भी......
सदियों से औरतें प्रेम में यह आदान प्रदान बिना किसी टर्म्स एंड कंडीशन से करती आयी है.....
उसका यह पूर्ण समर्पण वाला प्रेम देख कर मेरे मन में छुपा हुआ आदिम पुरुष हैरान होता है.....
क्योंकि यह आदिम पुरुष अपने ही तरीके से प्रेम करता है.....
वह तो सिर्फ़ और सिर्फ़ तन को ही चाहता है....
उसे तो प्रेम करने के लिए अदद तन चाहिए...
सिर्फ़ तन और तन ही चाहिए....
वह हर बार हर तन को चाहने लगता है.....
वह बार बार मन से बस तन की ही माँग करता जाता है.....
उस आदिम पुरुष को प्रेम में न शाश्वतता की दरकार होती है और ना ही उन अहसासों की भी.....
उसके प्रेम में मन की चाहत की बात कहाँ होती है?
सदियों से वह आदिम पुरुष लेन देन में नफ़े नुकसान की परवाह करता आया है
इसलिए की वह लेन देन के बार्टर सिस्टम को जानता है.....
फिर वह प्रेम में भी बार्टर सिस्टम को अपनाने लगता है.....
दो वक्त की रोटी और एक अदद छत के बदले प्रेम देने की बात करने लगता है....