Dimpy Goyal

Drama Romance Classics

4.7  

Dimpy Goyal

Drama Romance Classics

दारू और दोस्ती

दारू और दोस्ती

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हम ना शौक़ीन थे, मयख़ाने के पहले पहले, 

दोस्तों ने मुझे, यह आदतें लगा डाली, 

मैं ना पीता था, तौबा थी मेरी इससे, 

दोस्तों ने जबरन, मुझे पिला डाली, 


नशा बहा जो रगों में,फिर  यूँ आफ़त बनके,

चड़ गयी मुझ पे ये दारू, मेरी शामत बनके,

होश की छुट्टी हुई, कदम लड़खड़ाने लगे,

चेहरा ये लाल हुआ, ख़याल तमतमाने लगे,


दुनिया की आबों -हवा ढंग बदलने थी लगी, 

पहले जो बोझ थी ज़िंदगी, रंगीन लगने लगी,

देखते देखते,मौसम भी मज़ेदार हुआ,

बैठे - बैठे कई परियों का, फिर दीदार हुआ,


आँखों की फैली पुतलियाँ, सब धुँधला गया,

मयखाना घूमा मेरे साथ, मज़ा आ गया,

नशा जो सर पे चढ़ा, तो पैर थिरथराने लगे, 

किशोर तो, कभी रफ़ी बनके गुनगुनाने लगे,


ग़ुबार पूरा निकाला, न दिल ने ईक मानी, 

ब्यान हुई बीवी और बोस की सब मनमानी,

ज़ुबान पे क़ाबू ख़त्म था, तो बड़बड़ाते रहे,

उल्टे सीधे करतब, दोस्तों को दिखाते रहे,


होश मँझधार में -किनारे पे आते जाते रहे,

जाम भर भर के वो  कमबख़्त पिलाते ही रहे, 

पाँच थे दोस्त, कई गुना हो के, पंद्रह-बीस हुए,

घड़ी पे देखा वक्त, सुबह के तीन तीस हुए,


कौन मकतब, कौन साक़ी, कुछ पता ना चले,

बंद जो हुआ मयखाना, तो घर को निकले,

मायूस ज़िंदगी में, सहारे दे के यही थामें,

दोस्तों के कर दी नाम, अपनी सब शामें,


है दुआ अपनी, दोस्तियाँ यूँ ही खिलती रहें, 

मयखाने आबाद रहें, दारू सब को मिलती रहे,

दोस्त और जाम तो दुआ से है, सबको  ख़ुदा बख्शे, 

महफ़िलें जमती रहें, हर पल, हर रोज़, हर हफ़्ते।


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