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Dimpy Goyal

Others

4.3  

Dimpy Goyal

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कई हाथ उठ्ठे

कई हाथ उठ्ठे

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मेरी बेगुनाही का मैं खुद ही चशमदीद तोहमत लगाने को कई हाथ उठ्ठे

मरहम ज़ख्म पे न कोई लगाये पत्थर उठाने को कई हाथ उठ्ठे

आँखों के आंसूं कोई भी पोंछे फिर से रूलाने को कई हाथ उठ्ठे

मेरे गम से राहत कोई न दिलायेसमझाने बुझाने कई हाथ उठ्ठे

तोडा जो दम तब कोई भी नहीं थामातम मनाने कई हाथ उठ्ठे

जिंदा को देने सहारा न आयेजनाजा उठाने को कई हाथ 

अस्मत बचाने कोई भी न आयामुज्लिस सताने कई हाथ उठ्ठे

जलते घरों पे ,न पानी कोई डालेपर हल्ला मचाने कई हाथ उठ्ठे

सीमा पे लड़ता नहीं कोई नेतादेश बचाने न कोई हाथ उठ्ठे

खाने की जब देश को बारी आई तो पैसा कमाने कई हाथ उठ्ठे

डेमोक्रेसी बचे न बचे , क्या फ़िक्र है सरकारें बचाने कई हाथ उठ्ठे

जनता मरे तो मरे , इनकी बला से'ममता' मनाने कई हाथ उठे

रामायण की चौपाई ,कुरान-ए-आयात दोनों का सम्बन्ध न कोई

बताये मगर दो नो में फरक कितना, बताने पंडित मौलाने कई हाथ उठ्ठे

बीमारों को कौन संभालेगा बोलो किसी भी बहाने न कोई हाथ उठ्ठे

दौलत के बटवारे का मामला था तो अपने बेगाने कई हाथ उठ्ठे

कातिल को सज़ा, कौन दिलवाता यहाँ पेसभी हाथ तो खून से ही सने थे

मगर इन्साफ की दुकानों के बाहरनारे लगाने कई हाथ उठ्ठे!


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