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Dimpy Goyal

Tragedy

4  

Dimpy Goyal

Tragedy

तन्हाई

तन्हाई

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तन्हाई को, भर लेते हैं, 

खुद से बातें, कर लेते हैं ।।

कभी-२ तो, हम जी जाते हैं , 

और कभी फिर, मर लेते हैं ।।


बरसों से, चौखट पे कोई,

आहट भी तो, आई नहीं है,

अरसों बीते , नाम की मेरे

आवाज़ किसी ने, लगाई नहीं है,

आलम यह है, सूनेपन का,

परछाई का पीछा, कर लेते हैं ।।


सुनने वाला, दोस्त नहीं कोई,

किस्से बहुत हैं, कहने को,

ना कोई, हमदर्द बचा है,

ना ही रक़ीब है, झगड़ने को,

घर में मैं, और मेरा साया,

चाय पे चर्चा कर लेते हैं ।।


अध-खुली खिड़की से कभी-२,

धूप आ जाए, मिलने को ,

अंधेरा साथी, ऐसा पक्का , 

तैयार नहीं है, हिलने को ,

घड़ी के काँटे, से सब बाँटे,

ख़ुशी-ग़म, यूँ ज़र लेते हैं ।।


चौकीदार का लड़का कभी, 

ला के दवाई, दे जाता है 

रुकता नहीं है एक पल भी , 

चेहरे की झुर्रियों से घबराता है , 

हँस देते, कभी बिना वजह ही,

आँख में पानी भर लेते हैं ।।


तिनका तिनका कर के हमने, 

यादों का एक घर जोड़ा है ,

बीते दिनो के सुनहरे पलों का , 

एक ख़ज़ाना रख छोड़ा है,

उनमें से कोई दिलकश क़िस्सा,

याद रोज़ाना कर लेते हैं ।।


बारिश का शोर, घड़ी की टिक-२,

जीवन में यही संगीत बचा है , 

बस सांसें यूँ ही अटकी हैं ,

काम ना कोई, शेष बचा है ,

जो जीवन में दिया है उसने,

शुक्र अदा उसे, कर देते हैं ।।


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