किसान - अन्न दाता
किसान - अन्न दाता
फ़रियादी नहीं है, ये हक़दार है
अन्न दाता जिसको सारे मानते हो तुम
झूठा है तरक सारा, मोल- भाव का
अंदर से थे बात, जानते हो तुम
चोरों और उचक्कों ने तो बस, खाया है देश को
सारी उमर किसान ने ही, खिलाया है देश को
थोड़ा जो मिले ग़रीब किसान को ज़्यादा, तो क्या बुरा
क्या अमीर की ही जेब को, पहचानते हो तुम
पसीने से नहीं, अन्न खून दे के है उपजता
देश तब ही खिले, जब हो खेत महकता
हर निवाला जो मिला, सब किसान का ही दिया
अनाज की क़ीमत क्या नहीं, पहचानते हो तुम
किसान तो बस मासूम है, व्यापारी कहाँ है
इसमें तोल मोल की, होशियारी कहाँ है
मिट्टी का आदमी है, मिट्टी से सोना उपजाए
आशा है इसे मिट्टी नहीं, मानते हो तुम
ना वाजिब नहीं किसान की, कोई माँग लगती
क़र्ज़दार है इसका, संसार का हर व्यक्ति
सितारे भी माँगे तो, ला कर के इसको दो
भगवान से भी बढ़कर, इसे मानते हो तुम
