तुम मिले तो
तुम मिले तो
पतंग बिना डोर की
ऐसी थी यह ज़िंदगी,
तू झोंका बन आ गई
यह आसमान को छू गई
सुखी कोई थी नदी
बरसों से जो तप रही
तू बारिशों सी आ गई
प्यास मिटा गई…
हवेली खंडहर सी
खामोशियों से झूझती
तू कोयल बन आ गई
वीराना चहका गई…
चौखट सुनी थी कोई
जो रास्ता तक थक गई
तू मेहमान बन आ गई
इंतज़ार मिटा गई …
ना जिसका कोई था पता
अंधेरी काली सी गुफा
तू जुगनू बन आ गई
रोशनी फैला गई …
टूटी कोई आस सी
अटकी कोई साँस सी
तू आशा सी बंधा गई
जीना सीखा गई …
आवारा बनी थी घूमती
उड़ती कोई धूल सी
तू मक़सद से मिला गई
नयी दिशा दिखा गई …
बेरंग थी करूप सी
कुचली,दबी अछूत
सी तू गले से लगा गई
मसीहा तू बना गई…