निस्वार्थ भाव
निस्वार्थ भाव
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सजा है निस्वार्थ रहना भी
बात करो फायदे की तो वो भी बडा़ गुनाह है
आँखों में ऐसे झांककर देखते
जैसे, हमारे ही मन-मंदिर में चोर छिपा है।।
तरक्की उनकी विकास भी उनका
करने वाले को मिलती सजा है
गलती हो तो ताने-गाली तैयार
अच्छाई को कब किसी ने अच्छा कहा है।।
सुखी रहते वो लोग हमेशा
जिन्हे अपने सिवा न किसी की चिन्ता न परवाह है
न उल्हानों का झंझट, न तन-मन का कष्ट
न ही बुराई पर उनकी शक गया है।।