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AKIB JAVED

Drama Others

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AKIB JAVED

Drama Others

कविता - गाँव में

कविता - गाँव में

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बदलते परिवेश में

अटपटे 

भाव वेश में

गाँव की

बदल रही

हिस्ट्री,

जियोग्राफ़िया।

खलिहर बैठे

मनो मस्तिष्क

में शून्य लिए

खूब हो रहे

अपराध है।

सड़कों की

लम्बाई

चौड़ाई

बदल रहा

घर का 

परिमाप है।

गाँवों में

शहर 

का जन्म

हो रहा है!



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