"श्रमिक व्यथा"
"श्रमिक व्यथा"
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श्रमिक व्यथा कोई भी न जाने
सबके सब है, स्वार्थी अफसाने
हम करे कड़ी मेहनत दिन-रात
फिर भी लोग हमें देते है, ताने
यह सब ऊंची-ऊंची इमारतें
हमारी श्रम बूंदों के है, आईने
श्रमिक व्यथा कोई भी न जाने
सब अमीरों की यहां बाते माने
सरकार भी न सुने, हमारे गाने
भीख न, काम दे जाने-पहचाने
ऐसी गुजारिश हम श्रमिक करे,
हमें मिले बस सही मेहनताने
हमें न चाहिए करोड़ों की खाने
दो वक्त की मिल जाये हमें रोटी,
शिक्षा की मिल जाये हमें ज्योति,
यही मांग रहे श्रमिक, हम खजाने।