STORYMIRROR

Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy

3  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy

"श्रमिक व्यथा"

"श्रमिक व्यथा"

1 min
194

श्रमिक व्यथा कोई भी न जाने

सबके सब है, स्वार्थी अफसाने

हम करे कड़ी मेहनत दिन-रात

फिर भी लोग हमें देते है, ताने


यह सब ऊंची-ऊंची इमारतें

हमारी श्रम बूंदों के है, आईने

श्रमिक व्यथा कोई भी न जाने

सब अमीरों की यहां बाते माने


सरकार भी न सुने, हमारे गाने

भीख न, काम दे जाने-पहचाने

ऐसी गुजारिश हम श्रमिक करे,

हमें मिले बस सही मेहनताने


हमें न चाहिए करोड़ों की खाने

दो वक्त की मिल जाये हमें रोटी,

शिक्षा की मिल जाये हमें ज्योति,

यही मांग रहे श्रमिक, हम खजाने।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama