अरमानो का आशियाना
अरमानो का आशियाना
किसी का प्यार अगर छूट जाये तो समझाया जा सकता हे
की जिंदगी आगे और भी हे
पर किसी का बसा बसाया घर उजाड़ जाये
अरमानो का आशियाना जल जाये। क्या कहेंगे उससे ? यू
चल रहा था जमीन पर, आसमान बदल रहा था,
ठंडी का मौसम था, सितारा बदल रहा था
किसीने पीछे से मेरे नाम की आवाज़ लगाई थी,
जब मुड़ के देखा
तो अरमानो का एक आशियाना जल रहा था,
हवा का बर्ताव भी कुछ अजीब था तब
लॉ को लपटों में बदल रहा था
उस हर हाथ को मेने आग बुझाते देखा
मेरे मुड़ने पे जो एक दूसरे से
जल्दी मशाले बदल रहा था .........
उसके शहर में,उसके लोगो क बिच
जब मुझे हाजिर किया गया
मेरे अरमानो को कुचला गया
मेरी महोब्बत को हसीं में उडाया गया
वो सहर भी उसका था वो मुंसिफ भी उसका
वो सहर भी उसका था वो मुंसिफ भी उसका
और में न समज़ वकीलों पे वकील बदल रहा था,
कौन था उस शहर में, जो मेरी तरफ से गवाही देता
में भी तो उसका था,
बयानों पे बयान बदल रहा था ....।
तेरी नाम की हजारी लगते लगते
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा
हर चौखट सर पटक रहा था
ये रोग, जिसे तुम पागल पैन कहते हो
सब मालूम हे मुझे
अरे परेशां तो वो हाकिम था
जो दवाइयों पे दवाई बदल रहा था
कैसे जी रहा होगा वो, यही सोच कर मेरा दिल बैठ जाता था
और एक तरह वो था जो कांधे पे कांधे बदल रहा था
पहला महीना ही बड़ी मुश्किल से गुजरा था मेरा
और एक तरफ वो था, जो हप्ते दर हप्ते बदल रहा था........।

