मेरा वतन
मेरा वतन
पहले मेरा वतन सोने की चिड़िया कहलाया।
हर तरफ खुशहाली और प्रेम का था साया।
हर इंसान ने दिल से सुख शांति का था खाया।
होली दिवाली दशहरा सबने मिलकर मनाया।
मगर मेरे वतन पर बहुत बुरी नज़रों का था साया।
वह मेरे वतन से न गया जो मेहमान बनकर आया।
बाहर के कई शासकों ने यहां आकर डर दिखाया।
फिर मुगलों ने आकर हम पर ख़ूब क़हर बरपाया।
हमें ख़ूब लूटा और यहां क़त्ल ए आम मचाया।
हमारे मंदिरों को तोड़ा और गरीबों को सताया।
फिर मेरे वतन के सब राजाओं ने बीड़ा उठाया।
उन सबने मिलकर ज़ालिमों को काबू में लाया।
मेरे वतन ने वीर राजाओं को हमसे अवगत कराया।
महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान जैसों की थी माया।
इनकी वीर गाथाओं ने इतिहास में अपना रुतबा बढ़ाया।
इनके जैसे कई हिंदुस्तानी राजाओं ने सब कुछ गंवाया।
मेरे वतन को इन खूंखार ज़ालिमों स
े लड़कर बचाया।
इनको अपने हिंदुस्तान से बाहर का रास्ता दिखाया।
फिर अंग्रेज़ो ने आकर हम सब पर ख़ूब ज़ुल्म ढाया।
हमारे ही वतन में हमको अपना मोहताज बनाया।
हम पर तरह तरह के अत्याचार करके हमें रुलाया।
फिर वतन के वीर क्रांतिकारियों ने एक इरादा बनाया।
दो सौ सालों के निरंकुश अंग्रेज़ीराज को ख़त्म कराया।
अंग्रेज़ो के ज़ुल्मों से वतन की जनता को मुक्त कराया।
राजगुरू, भगत सिंह, आज़ाद ने किया इनका सफ़ाया।
जो बच गए, उनको यहां से अपने देश रवाना करवाया।
आज़ाद वतन को कुछ अच्छे नेताओं ने फिर से सजाया।
वतन को गरीबी, अशिक्षा और बेरोज़गारी से दूर हटाया।
आओ सब शपथ लें कि दुश्मन का अब न पड़ेगा साया।
वर्ना अंजाम उनका वही होगा जो अंग्रेज़ों ने था पाया।
देशद्रोह, आतंकवाद से देश बचाएं जैसे हमने बचाया।
सब वतन का गौरव और बढ़ाएं, जैसे अब तक बढ़ाया।