हां, मैं पुरुष हूं
हां, मैं पुरुष हूं
मैं घर परिवार की,
ज़रूरतों को पूरा करने को,
पैसा कमाकर लाता हूं।
अपने बच्चों की हर इच्छा,
पूरी करने को विवश पाता हूं।
मैं एक पिता हूं।
हां, मैं पुरुष हूं।
मैं अपनी पत्नि के लिए,
यही सोचता हूं कि उसके,
सारे सपने पूरे कर सकूं।
ज़िंदगी के हर मोड़ पर,
उसका साथ निभा सकूं।
मैं एक पति हूं।
हां, मैं पुरुष हूं।
मैं अपनी बहन की,
इस दुनिया की बुराइयों से,
रक्षा करने का वादा निभाता हूं।
उसकी हर ख़्वाहिश को पूरा,
करने को हद पार कर जाता हूं।
मैं एक भाई हूं।
हां, मैं पुरुष हूं।
मैं अपने माता पिता की,
दिन रात सेवा सत्कार को,
पूरे तन मन से तैयार रहूं।
उन्हें कोई कष्ट पीड़ा न हो,
यह देखने को होशियार रहूं।
मैं एक पुत्र हूं।
हां, मैं पुरुष हूं।
मैं बहुत दुखी होने पर भी,
रो नहीं पाता हूं,
तो मैं कठोर कहलाता हूं।
मैं हर छोटे संकट में,
रोऊं तो मैं हँसी का पात्र,
बनकर रह जाता हूं।
हां, मैं पुरुष हूं।
मेरे अंदर भी भावनाएं,
विवशताएं, दुर्बलताएं,
उथल पुथल मचाती हैं।
मेरे अंदर करूणा, दया,
कोमलता और निर्बलता,
अपना घर बसाती हैं।
हां, मैं पुरुष हूं।
कठोरता और सज्जनता,
सबलता और भयहीनता,
का बनकर रहूं मैं प्रतीक।
और हर परिस्थिति में,
व्यवहार को संतुलित करूं,
यह अपेक्षा भी नहीं ठीक।
हां, मैं पुरुष हूं।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश,
जैसे त्रिदेव का प्रतिरूप,
कभी देव मुझ में बसते।
महिषासुर, रावण, कंस,
जैसे दानवों का हूं रूप,
ये दानव मुझमें ही बनते।
हां, मैं पुरुष हूं।
राम भी मैं हूं,
कृष्ण भी मैं हूं,
अजर अमर हनुमान हूं।
प्रिय सीता जी के बिना,
राधा और रुक्मणि के बिना,
मैं शून्य हूं, केवल अनुमान हूं।
हां, मैं पुरुष हूं।
अपने आप में,
मैं तो संपूर्ण हूं,
फिर भी मैं अधूरा हूं।
बिना एक स्त्री के,
संग साथ के होता,
कहां मैं पूरा हूं।
हां, मैं पुरुष हूं।