जब जब सावन का महीना आता है
जब जब सावन का महीना आता है
जब जब सावन का महीना आता है,
बेवफ़ाई का अफ़साना याद आता है।
रिमझिम बारिश की बूंदें,
मेरे तन को भिगो जाती हैं।
मेरी ये दोनों सूखी आँखें,
बस आँसुओं से भीग जाती हैं।
तुमसे जुदाई की यादें आती हैं,
तुम्हारी यादें ताज़ा हो जाती हैं।
जब जब सावन का महीना आता है...
तुम्हें भी याद होंगे वे लम्हें,
हम दोनों एक दूजे में खोते थे।
बाहों में बाहें डाले हुए जब,
बस यूं ही कई सपने संजोते थे।
वे सपनों की यादें रुलाती हैं,
तुम्हारी यादें ताज़ा हो जाती हैं।
जब जब सावन का महीना आता है...
वादे किए थे हमने बहुत सारे,
एक दूजे से, कभी जुदा न होंगे।
गवाह बना था हमारा यह सावन,
हम तुम्हारे, तुम हमारे साथ होंगे।
वे वादों की बातें तरसाती हैं,
तुम्हारी यादें ताज़ा हो जाती हैं।
जब जब सावन का महीना आता है...
क्यों खाई थीं तुमने वे कसमें,
जब हमसे जुदा ही होना था।
जब तुम्हें किसी और का ही,
सनम और हमसफ़र होना था।
वे झूठी कसमें तड़पाती हैं,
तुम्हारी यादें ताज़ा हो जाती हैं।
जब जब सावन का महीना आता है...
भले ही इस सावन के आने से,
सब सूखी नदियाँ भीग जाती हैं।
बागों पर नए नए फूल आते हैं,
पेड़ों पर नई कलियाँ खिल जाती हैं।
मगर मेरे मन की कलियाँ मुरझाती हैं,
तुम्हारी यादें ताज़ा हो जाती हैं।
जब जब सावन का महीना आता है,
बेवफ़ाई का अफ़साना याद आता है।