दुख के सफ़र में मिला सुख
दुख के सफ़र में मिला सुख
सुख की आस में चली मैं उसे ढूंढने
सबको पीछे कर लगी उसे खोजने
मैं बेचारी थकी हारी
सुख के रास्ते भीड़ में अकेली पूरी
रस्ते के बीच में खड़ी मैं पथहीन
सोचूं बस यही
आगे का सफर हो कैसे पूरा साथी बिन
पीछे से मिला सहारा सहायता का हाथ
ना कोई जान ना पहचान फिर कैसे दूं अपना हाथ
उसे तो है अब मेरे संग रहना
मेरा भी तो अकेले मुश्किल है आगे एक भी कदम बढ़ाना
वह और मैं चले संग - संग
बुनते सपनों के सुनहरे रंग
सफर में आकर उससे तंग कर दिया खुद से दूर
फिर भी वह पीछे-पीछे आई दिखाने अपना गुरुर
मैं चली हूं ढूंढने सुख
तुमसे मिला मुझे है सिर्फ दुख
वो समझाकर बोली
समझो तुम मेरी एक-एक बोली
मुझसे ही शुरु तुम्हारी आत्मा
मुझ पर ही होता तुम्हारे जीवन का खात्मा
मुझ से गुज़र मिली तुम्हें स्थिति
अंत में जा मिले धरा में यह अस्थि
मैं हूं दुख का सागर
मुझ में समाया सुख का भंडार अपार
धरा पर आओ तो कष्ट
धरा से जाओ तो कष्ट
फिर क्यों इंसान करें मुझसे बैर
व्यवहार करें मुझसे ऐसा जैसे हूं मैं कोई गैर
भागे सुख के पीछे जब जगे पाने की आस
प्यासा भागे जैसे बुझाने अपनी प्यास
सागर में जैसे चुनी कोई मोती
दुख रूपी सागर में चुनलो तुम सुख का मोती
लगाओ उसमें खूब तरंग
भर दो जीवन में अपने रंग
दुख का सफर इतना भी ना था दुखदाई
बुरी बन कर भी आज बन गई सबके लिए वो सुखदाई
आज मैं समझी जीवन का रस भरा दुख
जब दुख के सफर में भी मिला सुख।