बच्चे मन के सच्चे....
बच्चे मन के सच्चे....
बच्चे मन के सच्चे....
बच्चे देश का भविष्य है.....
कोई भाषण दे रहा था....
क्या बड़े और क्या ही छोटे सब सुन कर तालियाँ पीट रहे थे...
तालियों की गड़गड़ाहट और भाषण में वादों की सौगातें थी....
लोग बेहद खुश थे....
उन भाषणों की सौगातो में लोग रंगीन भविष्य में रंगने लगे....
रंगीन भविष्य की आस में लोगों को भूख की चिंता थी और न ही रोटी की..
अचानक भाषण के बीच धर्म खतरे में है कि आवाज़े गूँजने लगी...
तालियों की गड़गड़ाहट वाले हाथों की अब मुट्ठियाँ भिंचने लगी...
उन चेहरों को पता ही नहीं चला कि कब उनके चेहरों से खुशी की जगह नफ़रत ने ली है...
चारों तरफ़ नारों की आवाज़ जोर जोर से गूँजने लगी...
भाषण में अब वीर रस का संचार होने लगा...
देश को आगे ले कर जाना है....देश को आगे बढ़ाना है....
भीड़ में तालियाँ पीटते बच्चे और ज़ोर से तालियाँ पीटने लगे...
स्कूल और अस्पताल की ज़रूरत उस तालियों की आवाज़ में कही अंदर दब गयी....
मन के सच्चे बच्चों के गुमान में भी नहीं था कि बिना स्कूल के भविष्य कैसे अच्छा होगा?
भविष्य होगा भी?
और वहाँ भाषण में नारों का शोर और बढ़ने लगा....