सच्ची दोस्ती के जज्बात
सच्ची दोस्ती के जज्बात
"माँ कहाँ हो तुम ?".....अजय दौड़ता हुआ सा घर के अंदर प्रवेश कर माँ को पुकारने लगा।…." बेटा मेरे लाल तुझे अब माँ की याद आई "....अजय की माँ आँचल से हाथ पौंछती हुई रसोई घर से निकल अजय को गले से लगा लेती हैं। " कितने दिनों बाद आया रे".....आँचल से आँख के कोरो में आए आँसू को पौंछते हुए वह अजय को ममता से निहारने लगी। " लगता है बोर्डर पर रहते रहते निर्मोही सा हो गया तभी माँ की याद ना आई ".....अजय की माँ झूठमूठ का नाराज होने का नाटक करने लगीं।
"माँ…माँ….तुम जानती हो हम सब की माँ भारत माँ की रक्षा की जिम्मेदारी और बेटों की तरह तेरे इस बेटे के कंधे पर भी है। मेरी प्यारी माँ मेरी अच्छी माँ…..यह कह अजय अपनी माँ को कोहली भर लेता है। " अच्छा माँ!...राज और ज्योती कहाँ हैं ? "
अजय, राज और ज्योती तीनों बचपन से ही साथ पले बड़े हैं तीनों की दोस्ती जम्मू के रामनगर क्षेत्र में प्रसिद्ध है। बड़े होकर अजय फोज में चला गया। राज अपने पिता का व्यापार संभालने लगा और ज्योती की अपनी आर्ट गैलरी है। उसे बचपन से ही चित्रकला का शौक था।
अजय ज्योती से मिलने उसके घर गया। ज्योती अपनी कोई नयी पेंटिग बनाने में व्यस्त थी।उसको अजय के आने का पता ही नही चला….तभी अजय उसके कान में होले से फूंक मारता है, ज्योती जैसे ही पलटती है अजय को देख खुशी से उस से लिपट जाती है। अजय भी उसे बाँहों में कस लेता है। " क्या तुम्हें कभी मेरी याद नही आई ?....इस बार कितने दिनों बाद आए हो "....ज्योती शिकायत भरे लहेजे में बोलती है। अजय मुस्कराते हुए उसकी ठुड्डी ऊपर उठाता हुआ बोला " तुम और राज तो वहाँ भी मेरे साथ हर पल होते थे और फिर यहाँ तुम्हारा ख्याल रखने के लिए राज को छोड़ कर जो गया था। "
" वह साहबजादे हैं कहाँ ? ".....अजय जैसे ही ज्योती से राज के बारे में पूछता है तभी राज घर के अंदर प्रवेश करता है। उसके हाथ में पियानो की किताब थी जो वह ज्योती के लिए लाया था। ज्योती आजकल पियानो सीख रही थी। अजय को देख राज खुशी से पागल हुआ अजय से लिपट जाता है। " यार तेरे बिना यहाँ सब सूना लग रहा था। " कह वह भावुक हो जाता है वही क्या तीनों की ही आँखें नम हो जाती हैं।
अजय और ज्योती एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे। बल्की दोनों की शादी की बात भी घर में चल रही थी। अजय अभी बस पन्द्रह दिनों के लिए ही आया था। इधर राज भी ज्योती को मन ही मन पसंद करता था पर अपने दोस्त का प्यार देख वह अपनी भावनाओं को अपने अंदर ही दफन कर लेता है। वह ज्योती के हर काम के लिए हमेशा तैयार रहता मानो उसका अपनी मोहब्बत को सम्पूर्ण करने और जताने का यही तरीका हो।
अजय ज्योती एकदूसरे के प्यार में डूबे बहुत खुश थे। यह पन्द्रह दिन कैसे निकल गए पता ही नही चला। अजय का वापिस जाने का समय आ गया। ज्योती बहुत उदास थी। अजय ने वादा किया कि अब जब वह वापिस आएगा तब वह ज्योती से विवाह करके उसे अपने साथ ले जाएगा।
अजय वापस चला गया….जाते जाते एक बार फिर ज्योती और माँ का ख्याल रखने को 'राज' को कह गया।
सीमा पर युद्ध शुरू हो गया था। अजय अपनी बटालियन का नेतृत्त्व कर रहा था। दिल में भारत माँ की रक्षा का जज्बा और उसकी बर्दी की जेब में माँ,ज्योती और राज की फोटो थी।
राज और ज्योती हर समय रेडियो से चिपके रहते और युद्ध की एक एक खबर पर नजर रखे होते….दिल दोनों के मुँह को ही आए रहते। अजय की बटालियन ने मोर्चा संभाल लिया था। भयंकर युद्ध हुआ तभी रेडियो पर खबर आई जो बटालियन अजय के नेतृत्व में फर्टं रो पर युद्ध कर रही थी….उसके सभी सेनिक एक विस्फोट में शहीद हो गए।
आज उस बात को एक महीना हो गया। अजय की बाॅडी तक नही मिलपायी थी। ज्योती के दुख की कोई सीमा नही थी। वह जैसे पत्थर सी हो गयी थी। उसके सारे जज्बात अजय के साथ ही ना जाने कहाँ गुम हो गए थे। तभी पता चला ज्योती माँ बनने वाली थी। ज्योती अजय की निशानी को अपने साथ रखना चाहती थी। घर वालों के समझाने और समाज की उठती ऊँगलियों से बचने के लिए वह राज से विवाह के लिए राजी हो जाती है। राज भी ज्योती का हाथ थाम लेता है आखिर अजय ने भी तो राज से ज्योती का ख्याल रखने का वचन लिया था।
मरणोपरांत भी अजय की आत्मा भटक रही थी। जैसे उसका कुछ अधूरा रह गया हो। जब अजय की आत्मा राज और ज्योती को पति-पत्नी के रूप में साथ देखती है तो तड़प उठती है। अजय के जज्बात गुस्से में परिवर्तित होने लगते हैं। वह राज से बदला लेने की ठान लेता है। उसे लगता है राज ने उसे धोखा दिया। उसने मेरी मृत्यु का पूरा फायदा उठाते हुए ज्योती से विवाह कर लिया।
अजय की आत्मा बदला लेने के उद्देश्य से राज के घर प्रवेश करती है तभी वह राज को ज्योती से कहते सुनता है ज्योती तुम बिलकुल भी चिंता ना करो यह विवाह सिर्फ समाज को दिखाने के लिए है साथ ही कोई अजय के होने वाले बच्चे को नाजायज ना कह सके इसके लिए यह विवाह जरूरी था। तुम मेरे पास हमेशा अजय की अमानत बन कर रहोगी। कह राज जैसे अपने जज्बातों को अपने तक समेट लेता है।
अजय यह देख और सुन कर शर्मींदा होता है कि वह तो राज से बदला लेना चाहता था पर…. राज तो अभी भी अपना दिया हुआ वचन निभा रहा है। यही तो है " सच्ची दोस्ती के जज्बात "।
