वह दिवानी
वह दिवानी
कहते हैं सावित्री अपने
सत्यवान को वापिस ले आयी थी
मेरा महबूब गया वहाँ,
क्या मैं भी उसे वापिस ला पाऊँगी ?
यही सोच, चल दी दिवानी उस ओर
जहाँ था बस दुनिया का अंतिम छोर।
देह पड़ी महबूब संग धरती पर मेरी
रूह दौड़ चली थाम जिद की डोरी।
सफेद संगमरमर सी ठंडी थी वह जगह 'रूहानी'
ढूँढ रही महबूब को अपने इधर उधर वह दिवानी।
नही छोर दिखता मुझको छुपे कहाँ हो सनम मेरे
ना रह पाऊँगी तुम बिन ना सताओ आ जाओ महबूब मेरे।
तभी एक आवाज ने उसे पुकारा
क्यूँ आ गयी हो यहाँ मेरी दिलरुबा
ना जा पाता यहाँ से कोई दुबारा।
ना जा पाऊँगा साथ तुम्हारे किस्मत नही मेहरबाँ
जिन्दगी का खत्म हुआ यहाँ मेरा कारवाँ।
उस दिवानी ने भी ना जाने की ठानी
छोड़ दी देह अपनी मिल गयी,
अपने महबूब से वह दिवानी।