हरो पीड़ा ओ रघुवीरा
हरो पीड़ा ओ रघुवीरा
रघुवर रघुराई हरो पीर हमारी,
धरों हाथ माथे हमें तार देना।
हे नाथ कष्टों भरी है कहानी,
वरों शीश को राम का नाम लेना।
फूलों भरा हार पीला सजाया,
चढ़े भोग मेवा करूँ आरती मैं।
प्यारें प्रभो भाव से साधना की,
रचा गीत गाती रही प्रेम से मैं।
दाता खड़ें हैं सहारे तिहारें,
चलें नेक राहें सँवारों हमें भी।
हे नाथ साकार हो कामना ये,
बनो आप साथी पुकारों हमें भी।।
प्रीती निभाना करूँ रोज पूजा,
जलाया दिया आस का नाथ मेरे।
दो आज आशीष स्वामी हमारे
कटे पाप भारी रहे रोज घेरे।।
