समय का पहिया
समय का पहिया
जिंदगी यहाँ पर बड़ी रफ्तार से दौड़ती है,
कभी इस ओर कभी उस ओर मोड़ती है।
बदलतो समय के साथ जिंदगी भी बदलती है,
किस्से की तरह कभी उलझती कभी सुलझती है।
समय के संग बदले हम-समय के संग बदले तुम
समय के संग बदल गये जाने कितने ही मौसम।
गर्मियों में पसीना बहाने वालों को
दो बूंद स्वच्छ पानी के लिए तड़पते देखा,
सर्दियों में सबके संग धूप का आनन्द उठाते थे जो
आज उन्हें कमरों में हीटर में अकेला बैठे देखा।
दोपहर को सांझ-सांझ को रात होते देखा,
रात का पैगाम फिर मैंने सुबह को देते देखा।
एक छोटे बालक को प्रौढ़ होते देखा,
एक छोटे से बीज को पेड़ होते देखा।
यहाँ हर मंजर को बदलते देखा,
हरे-भरे खेत को बंजर होते देखा।
समय का क्या वह तो कभी एक जगह ठहरता नहीं
परन्तु समय से भी तेज मैंने लोगों को बदलते देखा।
✍शिल्पी गोयल