दोस्ती
दोस्ती
मशरूफ है जमाना इस कदर
गैरों की क्या औकात
इसे ना खुद की फिक्र
अक्सर सोचती हूँ बैठकर
क्या कोई नहीं जिससे
बाँट सकूँ
कुछ उल्फत भरे पल
आओ बाँटे ये पल
पुराने दोस्तों के संग
जिन्हें आज का डर
ना कल की फिक्र
कुछ अपनी कहें
कुछ उनकी सुनें
शायद मिल जाए कोई हल
इतनी तेजी से जीवन
जीने का क्या फायदा
ना ही कोई तहजीब
ना ही कोई कायदा
मशरूफियत इंसान को
पत्थर दिल बनाती है
पर बिना जिंदादिली
जिंदगी कहाँ जी जाती है
इसलिए जहाँ मिले-जैसे मिले
चुरा लो अपने लिए
कुछ उल्फत भरे पल
ताकि जिन्दा रहे जिंदगी
और निकलते रहें कुछ हल,