रिश्ता
रिश्ता
एक प्यारा सा लड़का
थोड़ा सकुचाते थोड़ा शर्माता
जाने क्या-क्या था छिपाता
खुश था वह अपने जीवन में
बह एक कमी थी आँगन में
नैनों के दीप ना जलते थे
सब इसी कारण से जलते थे
फरिश्ता बन प्यारा सा रिश्ता जीवन में आया
जीवन रूपी बगिया को जिसने फिर महकाया
सात-जन्मो का साथ था जिनका
इसी जन्म में हुआ प्रमाणित
अपने नैनों के उजियारे से
जग सैंया को दिखाना है
नहीं पता था उसे इस बात का
क्या कदम प्रियतमा ने उठाना है
अपने नैन न्योछावर कर
जग सैंया को दिखलाया है
देखो हर कदम दोनों ने
एक-दूजे का साथ निभाया है
नज़र किसी की लगे ना रब्बा
खिलता रहे यूँ ही यह रिश्ता
जैसे दूर उपवन में खिलता
दुर्लभ पुष्पों का एक गुलदस्ता।