दिल की गुस्ताखियाँ
दिल की गुस्ताखियाँ
दिल ने आज
फिर की है गुस्ताखी
उस अजनबी को घूरकर
जिसकी परछाई की
आहट से हम सहम जाते हैं
मगर कौन समझाये
इस बावरे दिल को
अपनी मनमानी करता है
किसी और की कभी
सुनता नहीं है कम्बख्त
उसके आने से पहले ही
खिड़की खोलकर
आसन जमा लेता है
नज़र नहीं आती आजकल
शायद राह बदल ली।