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Vikas Kumar

Drama Tragedy

4  

Vikas Kumar

Drama Tragedy

ये बातें ख्वाब बनकर ना रह जाएँ

ये बातें ख्वाब बनकर ना रह जाएँ

2 mins
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ए मेरे फोन,

ये तेरी है कैसी माया,

तूने सबको अपने,

चंगुल में है फसाया,

सामने बैठा हुआ,

इन्सान भी अनजान,

घर के सारे रिश्ते नाते,

अब तेरी ज़ुबान,

तूने इस इंसानी रूपी,

समाज को अलग बनाया,

एक अकेला एहसास,

एक अकेला ख्वाब दिखाया,

रफ्तार की ये दुनिया,

कुछ इस तरह बढ़ रही,

एक दूसरे सगे को भूल,

अजनबियों के संग चल रही।


याद है मुझे वो सारे पल,

तेरे आने के पहले के,

कैसे मैं खेलता था अपने दीवाने में,

कैसी थी मेरी ज़िंदगानी उस वक़्त,

कैसे थे मेरे दोस्त उस वक़्त,

कैसा था मेरा परिवार उस वक़्त,

कैसा था सबका साथ उस वक़्त,

कैसे थे पहचान उस वक़्त,

कैसा था मेरा बचपन उस वक़्त,

कैसा था मेरे बड़ों का जीवन उस वक़्त,

कैसी थी उनकी बातें उस वक़्त,

कैसे थे वो पल उस वक़्त,

कैसी थी तस्वीर उस वक़्त,

कैसे थे संगीत उस वक़्त,

कैसे थे चलचित्र उस वक़्त,

कैसा था इंतज़ार उस वक़्त,

कैसी थी एक पुकार उस वक़्त,

कैसा था लगाव उस वक़्त,

कैसा था प्यार वक़्त।


आंगन में एक आवाज़ थी,

पूरा घुमड़ता हुआ मीठा शोर था,

बच्चो बड़ों की अठखेलियाँ थी,

सबको एक दूसरे से लगाव था,

सबको एक दूसरे से प्यार था,

फिर अचानक जीवन में,

एक चीज प्रवेश हुई,

फोन की क्रांति ने शोर मचाई,

दूर रहते रिश्तेदारों को पास लाई,

जिनकी खबर महीनों सालो तक ना मिलती,

पल भर में उनकी तबीयत बताई,

अजनबियों को है इसने मिलाया,

एक दूसरे से है परिचय करवाया।


नए-नए एहसास जगाए,

नए-नए सपने दिखाए,

छाया कुछ इस तरह रंग तेरा,

बदल गया सब कुछ,

हो गया एक पल भी,

तेरे बिन अधूरा,

सुबह से शाम, दिन से रात हुई,

पर साथ के तेरे,कभी ना कमी हुई,

चढ़ता गया ऐसा तेरा बुखार इस तरह,

बढ़ गई दूरियाँ आसपास के,

जमाने से कुछ इस तरह।


सब कुछ नया-नया दिलाया तूने,

फिर भी लोगों को,

एक दूसरे के करीब ना बांध पाया तूने,

सब कुछ छीन लिया तूने,

आज ना वो आंगन है,

ना ही वो ज़िन्दगी है,

ना ही पहले जैसी वो बात,

ना ही पहले जैसी खुशियों की वो सौगात,

ना ही अब बड़ों का वैसा साथ है,

ना ही अब बचपन वैसा है,

ना ही अब पहले वाली बात है,

ना ही अब पहले जैसे पल हैं,

ना ही अब पहले जैसे लोग,

ना ही संगीत में वो धुन,

ना ही चलचित्र में वो आवाज़,

ना ही तस्वीरों मे वो चमक,

और ना ही पहले जैसा इंतज़ार।


ना ही उस कोयल की मीठी आवाज़,

और ना ही काली अंधेरी,

दादी नानी की कहानियों वाली रात,

ना ही वो अब रास्ते हैं,

ना ही वैसे मुसाफ़िर,

आज अकेलापन का दौर है,

पल भर सी खुशियों की चाह है,

इस फोन में लगे रह कर,

सबकुछ पाने का विश्वास,

सब कुछ बदल दिया तूने,

सब कुछ छीन लिया तूने,

रह गए हैं बस, मैं,

मेरी यादें, मेरी बातें,

और मेरा साथ।


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